भादों था ना सावन था
भीगा फिर क्यों दामन था
याद तुझे क्योंकर बैठा
खुद से मिलने को मन था
उलझे-सुलझे रिश्तों का
तब हर घर में आंगन था
सात-जनम तक साथ रहा
कैसा नाजुक बन्धन था
चेहरा है उतरा-उतरा सा
देखलिया क्या दरपन था
लड़ भिड़कर भी मीत रहे
मौसम कब था बचपन था
जाकर फिर जो ना लौटा
‘श्याम’ सखा जी जोबन था
Resource:- http://kavita.hindyugm.com/2009/08/blog-post_24.html
Tuesday, August 25, 2009
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