Tuesday, August 25, 2009

भादों था ना सावन था, भीगा फिर क्यों दामन था

भादों था ना सावन था
भीगा फिर क्यों दामन था


याद तुझे क्योंकर बैठा
खुद से मिलने को मन था

उलझे-सुलझे रिश्तों का
तब हर घर में आंगन था

सात-जनम तक साथ रहा
कैसा नाजुक बन्धन था

चेहरा है उतरा-उतरा सा
देखलिया क्या दरपन था



लड़ भिड़कर भी मीत रहे
मौसम कब था बचपन था

जाकर फिर जो ना लौटा
श्यामसखा जी जोबन था


Resource:- http://kavita.hindyugm.com/2009/08/blog-post_24.html

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